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गुरु ब्रम्हा गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर:………………………………………जी हाँ इस शब्द के इतने रूप हैं जिसके लिए कुछ भी कहना आसान नहीं अपितु बेहद कठिन है हाँ इतना जरुर कहा जा सकता है की यह एक ऐसा शब्द है जो इन्शान के जीवन में एक विशेष महत्व रखता है! दरअसल जन्म से लेकर मरणोपरांत तक किसी न किसी रूप में हमारे जीवन के इर्द गिर्द यह शब्द घूमता रहता है! ऐसे में सिर्फ पढ़ाने वाले गुरु तक ही इसे सिमित नहीं किया जा सकता बल्कि इस दरवाजे तक पहुँचने से पहले माँ-बाप, भाई-बहन या फिर अनेको रिश्ते इसी रोल को तो अदा करते रहते हैं! क्यों नहीं जब बच्चा इस धरती पर आता है तो उसे हँसना,बोलना,चलना,दौड़ना,सब सिखाया ही तो जाता है और सिखाने की हर प्रक्रिया सिर्फ और सिर्फ गुरु के द्वारा ही की जा सकती है! इस लिए इसके अनेकों रूप हम सभी के जीवन में हर जगह किसी न किसी प्रकार से जुड़े होते हैं! पूजनीय और प्रेरणादायी ब्यक्तित्व हर मोड़ पर हमेशा एक नयी उर्जा का एह्शाश दिलाते आगे बढ़ने की प्रेरणा देते है! ऐसे में नमन उन सभी ब्याक्तित्वों को जिन्होंने इस धरती पर चलना, बोलना, पढना, सोचना और समझना सिखाया क्योंकि हकीकत तो यही है की आज हम जहाँ भी है जैसे भी है जिस रूप में भी है सिर्फ और सिर्फ उनके दिए हुए शक्ति स्वरुप ज्ञान के बदौलत ही तो है!
हाँ बात यदि सिर्फ पढाई के दिनों में आने वाले गुरुओं की की जाय तो इसमें दो राय नहीं की पहले के समय और अब के समय में काफी बदलाव आ गया है लेकिन ऐसा कहना बिलकुल भी न्यायसंगत नहीं होगा कि सिर्फ पढ़ाने वाले गुरु ही बदल गए हैं कहीं न कही पढने वालों में आये अंतर और साथ ही साथ गर्जियानो कि सोच में बदलाव को भी इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है ! यहाँ एक पुरानी याद को ताजा करते हुए आगे बढ़ना चाहूँगा दरअसल बात उन दिनों कि है जब हम बारहवी में पढ़ते थे उस दौरान हमारे राजनीती शास्त्र के गुरु का एक तरीका उनको अन्य लोंगो से बिलकुल ही अलग करता था, मुझे आज भी याद है और इसके लिए आज भी मेरे मन में उनके प्रति सम्मान का भाव जग जाता है कि कैसे पीरियड में यदि सिर्फ कुछ ही बच्चे बैठे होते थे तो भी वो पढ़ाते जरुर थे, कभी कभी तो अधिक से अधिक आठ या दस ही बच्चे उपलब्ध रहते थे …………………. वैसे गुरु को आज भी सत सत नमन!
ऐसे में यह बात दावे के साथ कही जा सकती है कि आज भी उन गुरुओं कि कमी नहीं जो अपने शिष्यों के उज्वल भविष्य के लिए अपना वर्तमान दांव पर लगा देते है, अपनी हर एक ख़ुशी और गम के पलों को अपने शिष्यों के लिए न्योछावर कर उसे भुला कर आगे बढ़ जाते है! हाँ लेकिन उन गुरुओं को कभी भी इग्नोर नहीं किया जा सकता जो अपने आप को पेशेवर ही मान कर हर वक्त अपनी विद्वता का शौदा करने में ही लगे रहते हैं दरअसल ऐसे ही लोंगों के कारनामे से एक मछली पुरे तालाब को गन्दा कर देती है वाली कहावत चरितार्थ होती है!
बल्कि हकीकत तो यही है कि ऐसे गुरुओं(पेशेवर जनों) को गुरु कि संज्ञा दी ही नहीं जा सकती क्योंकि गुरु तो हमेशा निश्छल भाव का होता है उसके लिए तो उसका हर शिष्य एक सामान होता है वो चाहे कोई करोडपति घर का हो या फिर किसी गरीब परिवार से आता हो! फिर हम ऐसे लोगों को गुरु कैसे कह सकते है जो अपने एक घंटे को दस दस हजार तक या इससे ऊपर में बेचते हैं, लेकिन दुःख कि बात यही है कि आज ऐसे ही गुरुओं कि भरमार देखि जा सकती है! इस पेशेवर दौर में जितना ही कठिन स्कूलों को गिनना है उससे ज्यादा कठिन तो टूशन सेंटरों को गिनना हो गया है! लेकिन फिर यहाँ वही बात सामने आती है इसके लिए सिर्फ यही नहीं बल्कि इनकी बढ़ती संख्या में कहीं न कहीं हम स्वंय भी दोषी है, आज ऐसे गर्जियानो कि संख्या बहुत कम है जो अपने बच्चों को ट्यूशन से दूर रखना चाहते है अपितु अगर बच्चा ट्यूशन नहीं भी पढ़ना चाहता है तो भी उसके ऊपर जबरदस्ती इसे थोपा जाता है, आज यह एक स्टेटस सिम्बल बन चुका है! बड़े बुजुर्गों के अनुसार एक वो जमाना हुआ करता था जब कोई बच्चा ट्यूशन पढता था तो उसे हेय दृष्टी से देखा जाता था जिसे आज शान समझा जाता है! इस परिस्थिति में सिर्फ प्रोफेसनल गुरुओं को ही दोषी नहीं बल्कि इनसे ज्यादा इनको प्रोत्साहित करने वाले गर्जियानो को इसके लिए जिम्मेदार मान जा सकता है क्योंकि इनका मनोबल तो इन्ही के द्वारा बढ़ता है!
हाँ जहाँ तक गुरु का सवाल है तो ऐसे गुरु कि कभी कोई कमी नहीं रही है जो अपने शिष्यों के उज्वल भविष्य कि कामना करने का हर संभव प्रयत्न करते रहते है! दरअसल कोई भी गुरु ऐसा कदापि नहीं चाहता की उसका कोई भी शिष्य सफलता की उस सीढ़ी को छूने में असफल हो जाये जिसकी उसने कल्पना कर रख्खी है और जिसके लिए वह अपना दिन रात एक किये हुए है, गुरु के लिए तो उसके सभी शिष्य एक सामान ही होते है! इस लिए एक बार फिर और बार बार नमन उन सभी ब्याक्तित्वों को जो हर वक्त कुछ सिखाने में प्रयत्नशील रहते है, और जो अपनी बिद्या कि बोली लगाये बिना उसे इस समाज में पूर्णतया उड़ेल देना चाहते है तथा अपने से भी बेहतर और पराक्रमी चेहरा अपने शिष्य के अन्दर देख उसे तराशने कि कोशिश करते रहते है!
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