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बहुत दिन हुए कुछ लिखना चाहते हुए भी लिख नहीं पाया, इसके बहाने कई हो सकते हैं लेकिन सच कहूँ कोई मुद्दा ही नज़र नहीं आया सिवाय राजनीतिक गलियारे के, जिसपर मै कुछ लिखना नहीं चाहता। खैर उँगलियाँ नहीं मानी और इसी से जुड़े एक मुद्दे के आकर्षण में लेपटॉप के ऊपर थिरकने से मै इन्हे रोक नहीं पाया……..
आइये यहाँ चर्चा करते हैं बीतते गर्मी के मौसम में भी राजनीतिक गर्माहट के चढ़ते पारे की, वर्तमान समय में एक बार फिर देश लोकसभा चुनाव के बाद उपचुनाओं को लेकर काफी सरगर्मी में आगे की ओर अग्रसर है। लोकसभा चुनाव के दौरान सभी राजनितिक पार्टियों और अधिकतर राजनेताओं के द्वारा मुझे एक बात कामन दिखी, ऐसा संभव है आपको भी शायद ऐसा ही लगा हो और वो है एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने की प्रवित्ति। भारतीय रानीतिक गलियारे में गहरी जड़ जमा चुकी और निरंतर गति से चलने वाली इस प्रवित्ति की गति महासमर के नाम से चर्चित २०१४ लोकसभा चुनाव के लगभग तीन महीने बाद अब एक बार फिर गति पकड़ती दिख रही है। ऐसे में यह कहना शायद गलत न हो की फिर लगभग तीन महीने पहले वाला दौर शुरू हो चुका है। इसलिए यदि आप राजनीत के इस प्रवित्ति से रूबरू न हुए हों तो इससे परिचित होने के लिए आपके पास एक सुनहरा अवसर है।
वैसे जिंदगी में कुछ भी जीतने के लिए एक चीज़ की सामान आवश्यकता होती है और वो है कड़ी मेहनत, चाहे कोई भी छेत्र हो इसके बिना किसी भी चीज़ पर कब्ज़ा पाना आसान नहीं होता। इसके साथ एक दूसरा सबसे महत्वपूर्ण पछ यह भी होता है अपनी उपलब्धियों को सबके सामने पेश करने का। हालाँकि राजनीति में भी पहले वाली बात तो समान दिखती है लेकिन दूसरे पछ कि कमी जरूर मह्शूश होती है। दरअसल नौकरी छोटी हो या बड़ी कैंडिडेट को अपनी उपलब्धियों को सभी के सामने रख्नना होता है जबकि ठीक इसके विपरीत राजनीत में चुनाव बड़ा हो या छोटा इसमें आरोप-प्रत्यारोप लगाने की प्रवित्ति अब एक ट्रेंड बन चुकी है। अपनी उपलब्धियों के अलावां विरोधी के कार्यकलापों पर छीटा कसी करना ही बहुत से राजनेता अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं। खैर यह भी एक हद तक देश के लिए ठीक हो सकता हैं आखिर इससे प्रतियोगिता का भाव जग सकता है, विकास को गति मिल सकती है लेकिन यह तब संभव है जब इस काम को भी सकारात्मक तरीके से किया जाय। लेकिन यहाँ तो सामने वाले के सकारात्मक कार्यों को भी नकारात्मक तरीके से पेश करने की आदत जान पड़ती है। पुरे विश्व में चर्चित लोकसभा २०१४ चुनाव भी इसी में डूबा दिखा। इसके दौरान रोज दिन में दसों बार ऐसा नजारा देखने को मिल जाता था जब कोई ब्लॉक से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक का नेता माइक के सामने दूसरों की अच्छाइयों को दरकिनार कर जबरदस्ती उसके अंदर से कोई न कोई बुराई निकालने के फ़िराक में लगा रहता था। ऐसे में अगर इसे एक घिनौनी और विकास अवरुद्ध राजनीत कहा जाय तो शायद ही गलत हो।
हलाकि यहाँ यह मान लेना कि आरोप- प्रत्यारोप लगाने वाली प्रवित्ति देश के हर राजनितिक पार्टी और हर राजनेता में है ठीक नहीं होगा, इसे सौ फीसद किसी भी स्थिति में नहीं माना जा सकता क्योंकि इसी राजनीतिक गलियारे में कुछ ब्यक्तित्व ऐसे जरूर हैं जो ऐसी प्रवित्ति से दूर दिखते हैं। ज्यादा तो नहीं लेकिन यहाँ मै कम से कम एक ब्यक्तित्व की चर्चा जरूर करना चाहूंगा जिसमे दूसरों से कुछ अलग करने का नजरिया दिखता है, तभी तो ऐसी घिनौनी परिपाटी से अलग लोकसभा चुनाव के दौरान भी लगातार वह दूसरों की अच्छाइयों की सराहना करते हुए अपनी उपलब्धियों को जनता के सामने पेश करते दिखे। जी हाँ मै बात कर रहा हूँ माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की। यहाँ हो सकता है की उनके विरोधियों को लगे कि मै उनकी बड़ाई बघारे जा रहा हूँ, संभव है ऐसा उनको बिलकुल भी अच्छा न लगे। लेकिन यह हकीकत है और हकीकत से दूर नहीं जाया जा सकता। इसे उनके आत्मविस्वास कि मजबूती ही कहा जा सकता है कि लोकसभा चुनाव से पहले और चुनाव के दौरान लगातार उनके राजनीतिक विरोधी उन पर हल्ला बोलते रहे और वो दूसरों कि बड़ाई करते हुए अपनी ही धुन में मस्त दिखे। इस कला के धनि वो चुनाव के बाद भी अपनी इस विकास परक सोच के साथ आज भी अपनी धुन में मस्त हैं और उनके विरोधी चुनाव में मुह कि खाने के बाद भी लगातार उन पर छीटा कसी करने में।
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